प्रस्तावना :
जैसे ही चिलचिलाती गर्मी में तापमान बढ़ता हैं, भारत के सारे स्कूल अपनी वार्षिक गर्मी की छुट्टियाँ शुरू कर देते हैं।ये छुट्टियाँ न केवल पढ़ाई से छुट्टी हैं, बल्कि ये बच्चों को ताप लहरों के हानिकारक प्रभावों से बचाने का एक महत्वपूर्ण उपाय भी हैं। आइए, इस आलेख में ताप लहरों और बच्चों पर इसके प्रभाव को समझें।
ताप लहर :
ताप लहर अत्यधिक गर्म मौसम की एक लंबी अवधि हैं जिसमें आमतौर पर किसी विशेष क्षेत्रमें तापमान औसत से काफी ऊपर होता हैं। साथ ही आर्द्रता स्तर भी उच्च होता हैं।ताप लहर के दौरान तापमान लंबे समय तक, अक्सर कई दिनों या हफ्तों तक, लगातार ऊपर रहता हैं।
भारत का भौगोलिक अवस्थान देश के कई क्षेत्रों को भीषण ताप लहरों के संपर्क में लाता हैं।पिछले एक दशक में पूरे देश में ताप लहरों की पुनरावृत्ति और गंभीरता में चिंताजनक वृद्धि हुई हैं।मौसम संबंधी आंकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में लंबी अवधि और बढ़ते तापमान के साथ भारत में ताप लहरों की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई हैं।
पूरे भारत में बच्चों पर ताप लहरों के खतरनाक प्रभाव पर प्रकाश डालने वाली खबरें सामने आती रहती हैं। खासकर दिल्ली, चेन्नई, और हैदराबाद जैसे प्रमुख शहरों से मौसम की रिपोर्ट से पता चलता हैं कि तापमान 45° C से अधिक हैं। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता हैं, विशेष रूप से बच्चों के लिए। सिर्फ 2023 में बच्चों में गर्मी से संबंधित बीमारियों के कई मामले सामने आए हैं।
ताप लहर से बच्चों को होने वाले खतरें :
बच्चे विशेष रूप से ताप लहरों के प्रभाव के प्रति संवेदनशील होते हैं। सबसे पहले, बच्चों का सतह क्षेत्र और शरीर के द्रव्यमान का अनुपात अधिक होता हैं।इसका मतलब हैं कि वे वयस्कों की तुलना में गर्मी को अधिक तेजी से अवशोषित करते हैं, जिससे वे गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। इसके अलावा, बच्चों का पसीना तंत्र वयस्कों जितना विकसित नहीं होता और वे वयस्कों की तरह प्रभावी ढंगसे डिहाइड्रेशन को पहचानकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते।इससे उनमें गर्मी से संबंधित निम्नलिखित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता हैं:
1. डिहाइड्रेशन :
- डिहाइड्रेशन तब होता हैं जब बच्चों के शरीर में उनके सेवन से अधिक तरल पदार्थ निकल जाता हैं।इसके कारण इलेक्ट्रोलाइट्स स्तर में असंतुलन हो जाता हैं और शारीरिक कार्यकारिता बाधित हो जाते हैं।
- ताप लहर के दौरान अत्यधिक पसीने के कारण बच्चों में डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता हैं, जिससे शरीर में तरल पदार्थ की कमी हो जाती हैं।
- बच्चों में डिहाइड्रेशन के कारण अत्यधिक प्यास, शुष्क मुँह, गहरे रंग का मूत्र, थकान, चक्कर आना, और सम्भ्रम जैसे लक्षण शामिल हैं।
- गंभीर डिहाइड्रेशन से गुर्दे की विफलता, गर्मी से थकावट, और हीटस्ट्रोक जैसी गंभीर जटिलताएँ हो सकती हैं।इसीलिए ताप लहरों के दौरान बच्चों को पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड रहना चाहिए ताकि ऐसी स्तिथियाँ उत्पन्न ना हो।
2. गर्मी से थकावट :
- गर्मी के कारण थकावट बच्चों में एक ऐसी स्थिति हैं जो लंबे समय तक उच्च तापमान के संपर्क में रहने और अपर्याप्त हाइड्रेशन के कारण उत्पन्न होता हैं, जिससे उनका शरीर अत्यधिक गर्म हो जाता हैं।
- बच्चों में गर्मी के कारण उत्पन्न थकावट से भारी पसीना, कमज़ोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, मतली, उल्टी, और मांसपेशियों में ऐंठन जैसे लक्षण शामिल हैं।
- शरीर की शीतलन प्रणाली बिगड़ जाती हैं, जिससे बच्चों के लिए अपने तापमान को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता हैं।
- शीघ्र उपचार के बिना गर्मी से थकावट हीटस्ट्रोक में परिवर्तित हो सकता हैं, जो एक जीवन-घातक स्थिति हैं।
3. ऊष्माघात :
- हीटस्ट्रोक या उष्माघात गर्मी से संबंधित सबसे गंभीर बीमारी हैं।यह उच्च शारीरिक तापमान के रूप में बच्चों में प्रकट होता हैं और आमतौर पर 104°F या 40°C से ऊपर तक के तापमान को छू लेता हैं।
- गर्मी से थकावट के विपरीत हीटस्ट्रोक में बच्चे की तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं, जिससे शरीर के मुख्य तापमान में तेजी से वृद्धि होती हैं।
- बच्चों में हीटस्ट्रोक के लक्षणों में तेज सिरदर्द, सम्भ्रम, स्थितिभ्रान्ति, दौरा, बेहोशी, और कोमा शामिल हैं।
- तत्काल चिकित्सकीय देखभाल महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हीटस्ट्रोक से मस्तिष्क में क्षति के साथ साथ दूसरे अंगो को क्षति पहुँच सकती हैं। यदि तुरंत इलाज न किया जाए तो यह घातक साबित हो सकता हैं।
4. बच्चों में गर्मी के कारण होने वाला ऐंठन :
- गर्मी से ऐंठन या मांसपेशियों में दर्दनाक ऐंठन आमतौर पर बच्चों को गर्मी में तीव्र शारीरिक गतिविधि के दौरान या उसके बाद प्रभावित करती हैं।
- ये ऐंठन पसीने के माध्यम से तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स के हानि के कारण होता हैं, जिससे बच्चे के इलेक्ट्रोलाइट स्तर में असंतुलन हो जाता हैं।
- ताप लहरों के दौरान घर के बाहर खेल-कूद या अत्यधिक गतिविधियों से बच्चों में ऐंठन विकसित होने का खतरा बढ़ जाता हैं, खासकर अगर वे पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड नहीं होते हैं तो।
5. हीट सिंकोप (Heat Syncope) :
- हीट सिंकोप, जो अचानक चेतना की हानि या बेहोशी की अवस्था हैं, अक्सर बच्चों को प्रभावित करता हैं जब वे गर्म परिस्थितियों में लंबे समय तक खड़े रहते हैं या अचानक मुद्रा परिवर्तन करते हैं।
- मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम होने से बच्चे अस्थायी रूप से बेहोश हो सकते हैं, विशेष रूप से ये उन बच्चों में देखा जा सकता हैं जो गर्म वातावरण जैसे बाहरी कार्यक्रमों या ताप लहरों के दौरान भीड़-भाड़ वाली जगहों पर लंबे समय तक खड़े रहते हैं।
6. घमौरियाँ :
- हीट रैश या घमौरियाँ बच्चों में होने वाली एक आम त्वचा की परेशानी हैं जो गर्म और आर्द्र मौसम के दौरान पसीने की नलिकाओं के अवरुद्ध होने के कारण होता हैं।
- बच्चों, विशेष रूप से शिशुओं, में उनके अविकसित पसीने की ग्रंथियों और शरीर के तापमान को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में असमर्थता के कारण घमौरियां होने का खतरा होता हैं।इससे उनके त्वचा पर लाल लाल दाने या फफोले पड़ जाते हैं, खासकर उन जगहों में जहाँ पसीना जमा होता हैं।
7. हीट एडिमा (Heat Edema) :
- उच्च तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहने के फलस्वरूप बच्चों के हाथों, पैरों, या टखनों में हीट एडिमा या सूजन हो सकती हैं।
- जो बच्चे गर्म मौसम के आदी नहीं होते या लंबे समय तक गर्म परिस्थितियों में खड़े या बैठे रहते हैं उन्हें हीट एडिमा का अनुभव हो सकता हैं।हीट एडिमा ऐसी स्तिथि हैं जब शरीर विस्तारित रक्त वाहिकाओं और हाथ-पैरों में तरल पदार्थ के संचय के माध्यम से तापमान को नियंत्रित करने का प्रयास करता हैं।
8. सनबर्न :
- सूर्य की पराबैंगनी (UV) किरणों के संपर्क में आने से बच्चों को सनबर्न हो सकता हैं।इससे त्वचा लाल और दर्दनाक हो सकता हैं। गंभीर मामलों में फफोले पड़ सकते हैं और वे छिल भी सकते हैं।
- बिना सुरक्षा के लंबे समय तक धूप में रहने से त्वचा के गंभीर नुकसान का खतरा बढ़ जाता हैं।
निष्कर्ष :
चूंकि बच्चे अक्सर पर्याप्त ब्रेक लिए बिना या हाइड्रेटेड रहे बिना बाहरी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, इससे गर्मी के प्रति उनकी संवेदनशीलता और बढ़ जाती हैं। इसलिए, शिशु और छोटे बच्चे ताप लहरों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वयस्कों पर निर्भर रहते हैं।ताप लहरों के दौरान बच्चों को अत्यधिक गर्मी के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए वयस्कों की निगरानी और निवारक उपाय आवश्यक हैं।